मेरी अना- भाग 9
भाग 9
पाखी देखने में खूबसूरत थी और सेकंड ईयर में थी। अनिकेत अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गया था। कॉलेज में वो ड्रामा सोसाइटी से जुड़ गया था और अक्सर कॉलेज में होने वाले नाटकों की स्क्रिप्ट वही लिखा करता था। जिंदगी आगे बढ़ रही थी, वो नए दोस्त बनाने लगा था। उसके अंदर का आत्मविश्वास धीरे-धीरे और निखर रहा था। पिता से भी रिश्ते सुधर रहे थे। नए रिश्ते बनने लगे थे और पुराना रिश्ता टूट गया था।
अनिकेत चाहता तो टूटे हुए रिश्ते के सिरों को फिर से जोड़ सकता था लेकिन ना जाने क्यों वो कोई कोशिश ही नहीं करना चाहता था। उसके लिए अना साहस का प्रतिबिंब थी, वो समझ नहीं पाया कि अना ने अपने पिता को उसके पिता को धमकाने से रोका क्यों नहीं? बस यही बात उसके मन में बैठ गयी थी। वो समझ नहीं पाया कि माना अना साहसी थी, उसमें हर शह से लड़ जाने की हिम्मत थी लेकिन थी तो वो एक लड़की ही, उसके भी अपने दायरे थे, उसकी भी कोई मजबूरी रही होगी।
अनिकेत का स्वभाव ही कुछ ऐसा था अपने विचारों को भीतर कैद करके रखने की उसे आदत थी। चाहे कितनी भी दीमक लग जाए जज़्बातों को लेकिन वो उन्हें धूप नहीं लगने देता था। ऐसा नहीं था कि वो अना को भूल गया था, बस इतना था कि वो उसे याद नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने आपको नई जिंदगी में मसरूफ कर लिया था।
पाखी से अक्सर मुलाकात होती रहती थी। हमेशा वो अनिकेत से कहीं ना कहीं टकरा ही जाती थी। शुरुवात में अनिकेत उसकी बातों का जवाब बस हाँ-हूँ में देता था लेकिन धीरे धीरे ही सही उनमें बातचीत होने लगी थी। कॉलेज में अक्सर अनिकेत और विकास के साथ पाखी भी नज़र आने लगी थी।
कुछ समय बाद अना ग्रेजुएशन के दूसरे साल में थी और अनिकेत पहले साल में। दोनों ही अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त थे। अना फ्रैंकफिन इंस्टिट्यूट से एयरहोस्टेस का कोर्स करना चाहती थी लेकिन उसके पिता ने कोर्स की फीस देने से मना कर दिया था। माँ गृहणी थी, अपनी आर्थिक जरूरतों की पूर्ति के लिए खुद उसके पिता पर निर्भर थीं। ऐसे में माँ से मदद मांगना फ़िजूल था। अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था अना को और एकदम धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलती थी। शाम को कॉलेज के बाद उसने कोचिंग क्लास में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाना शुरू कर दिया था। बच्चों को पढ़ाना अना को अच्छा लगने लगा था। वो अपनी सारी कमाई को बैंक में जमा करके रखने लगी थी।
अना भी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रही थी लेकिन अतीत था कि छूटे नहीं छूट रहा था। कितनी बार अनिकेत को फोन मिलाया लेकिन उसने उठाया नहीं, खत वो लिख नहीं सकती थी। उसने पीसीओ तक से अनिकेत को फोन करके देखा लेकिन सिर्फ फोन की घँटी बजती रही, उसने फोन कभी उठाया ही नहीं। वो अनिकेत के फोन का इंतज़ार करती रही लेकिन उसका फोन कभी आया ही नहीं। अब जब भी उसे फोन करती थी तो उसका फोन बंद आता था।
ऐसे ही एक दिन उसने स्कूल के समय की एक पुरानी मित्र रूही को फोन लगाया जो अनिकेत के पड़ोस में ही रहती थी। रूही से पता लगा कि अनिकेत बारहवीं में 85% अंक प्राप्त किये थे, फिलहाल वो दिल्ली चला गया है आगे की पढ़ाई के लिए। रूही ने ही अना को अनिकेत का नया फोन नंबर दिया।
रूही हैरान थी कि अना ने पहले क्यों नहीं उसे फोन किया। अना ने कहा वो पहले खुद कोशिश करके देखना चाहती थी और अनिकेत को समय भी देना चाहती थी इस समस्या से उबरने के लिए। वो इंतज़ार करती रही अनिकेत का लेकिन जब कोई हल नहीं दिखा तो हारकर उसने रूही को फोन किया।
रूही और अना में पक्की दोस्ती तो नहीं थी लेकिन स्कूल में सभी जानते थे कि अना अनिकेत की एकमात्र खास दोस्त है। अना ने रूही का आभार प्रकट किया फोन नंबर देने के लिए और फिर फोन रख दिया। जब नंबर नहीं था हाथ में तो बेचैनी थी अनिकेत से बात करने की, अब नंबर था हाथ में तो अजीब सा डर लग रहा था उसे अनिकेत से बात करने में। मन में यही ख्याल आ रहा था कहीं अनिकेत उसकी आवाज़ सुनकर फोन ना काट दे?
बहुत मुश्किल होता है बिखरे हुए टुकड़ों को फिर से जोड़ना। इतने महीनों से दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई थी और अब अचानक से फोन करने में घबराहट सी महसूस हो रही थी।
अगले दिन अना ने कॉलेज के बाहर बने पी सी ओ से अनिकेत को फोन मिलाया। काफी देर घँटी बजने के बाद उसने फोन उठाया…..
हैलो…..
अनिकेत काफी देर तक हैलो-हैलो करता रहा लेकिन सामने से कोई आवाज ही नहीं आ रही थी।
अनिकेत ने गुस्से से फोन रख दिया।
अनिकेत की आवाज़ सुनते ही अना बर्फ सी जम गई थी, कुछ कहते नहीं बन रहा था। उसके एक हैलो शब्द ने अना के मन में ढेरों जज्बात पैदा कर दिए थे।
एक बार फिर अना ने अनिकेत को फोन मिलाया….
हैलो कौन बोल रहा है?
फिर कोई जवाब नहीं। अगर आपको बात नहीं करनी है तो आप फोन करके अपने पैसे और मेरा समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं?
तभी अना ने धीरे से कहा…..मैं अना
कौन? ज़रा ज़ोर से बोलिए।
मैं अनाहिता बोल रही हूँ अनिकेत।
अना तुम? कैसी हो?
ठीक हूँ और तुम
अनिकेत ने गुस्से से कहा…मैं भी ठीक हूँ। फोन रख दो अना अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तुमने मुझसे बात की है तो मुझे तुम्हें बहकाने के जुर्म में जेल भिजवा देंगे। तुम्हारा तो कुछ नहीं जायेगा लेकिन मेरी जिन्दगी खराब हो जायेगी।
जब तक मैं हूँ तब तक तुम्हारे ऊपर कोई आंच नहीँ आयेगी। अना ने उस दिन के लिए अनिकेत से माफ़ी मांगी और उस दिन से जुड़ी सारी बातें अनिकेत को बता दीं।
कुछ देर तक अनिकेत चुप रहा, समझ नहीं आ रहा था वो अना से क्या कहे? जो हुआ उसमें अना कहीं भी गलत नहीं थी।
अनिकेत के यूँ चुप रहने पर अना ने कहा…..सब कुछ खत्म होने से पहले मैं एक कोशिश करना चाहती थी हमारी दोस्ती को बचाने की लेकिन शायद तुम नहीं चाहते अनिकेत। अपना ख्याल रखना, फोन रखती हूँ, तुम्हें दुबारा फोन नहीं करुँगी।
अनिकेत की एक ही दोस्त है और वो है अना। टूटे हुए लोगों को और रिश्तों को जोड़ना तुम बखूबी जानती हो अना। मेरी जिंदगी के अंधेरों को जगमगाना वाला जुगनू तुम ही तो हो।
अना और अनिकेत की दोस्ती पर छाए काले बादल तो छंट चुके थे लेकिन अना के मन में एक सवाल बाकि था…..तुम सब कितनी आसानी से छोड़कर चले गए अनिकेत। मैंने कितनी बार तुम्हें फोन किया और तुमने एक बार भी बात करना जरुरी नहीं समझा। ऐसी दोस्ती का क्या भविष्य है जहाँ भरोसा ही ना हो।
क्या करता अना, तुम्हारे पापा के फोन के बाद जो मेरे पापा ने मेरे साथ बर्ताव किया उससे मेरा आत्मविश्वास बिलकुल टूट चुका था। उस घटना की चुभन अब तक सीने में महसूस होती है। मेरे लिए अना अदम्य साहस रखने वाली लड़की का नाम था, मुझे नहीं मालूम थे तुम्हारे घर के हालात। मुझे माफ़ कर दो अना, अबसे तुम्हें कभी शिकायत का मौका।नहीं दूँगा। अब यह दोस्ती कभी नहीं टूटेगी।
रहोगी ना हमेशा मेरी।दोस्त?
तुम्हारे सिवा कभी किसी और की दोस्त बन सकती हूँ क्या?
अना ने अनिकेत का नंबर निशा के नाम से सेव कर रखा था और अनिकेत ने अना का नंबर रोहन के नाम से।
Sandhya Prakash
22-Mar-2022 01:06 PM
Khoobsurat lekhn
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Seema Priyadarshini sahay
15-Feb-2022 05:00 PM
बहुत ही खूबसूरत लेखन है आपका
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Inayat
14-Feb-2022 10:34 PM
नंबर में माइंड वर्क..☺️☺️
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